आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और एक आदर्श व्यक्तिमत्व के रुप में यदि किसी को याद किया जाता है तो वो हैं स्वामी विवेकानंद | उनके सिद्धांत, अलौकिक विचार और आदर्श जिनका स्वयं पालन करते हुए उन्होंने समाज और समूचे देश में भी उन्हें स्थापित किया वह विचार आज भी युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार कर सकते हैं। ईसवीं सन १९५० में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री. जवाहरलाल नेहरु ने अपने एक भाषण में स्वामी विवेकानंद के विचारों की चिर-प्रासंगिकता का वर्णन करते हुए कहा था कि “स्वामी विवेकानंद की रचनाएँ या व्याख्यान कभी पुराने नहीं लगते, उनकी कथानियाँ हमारी तथा विश्व की मूलभूत पहलुओं से संबंधित हैं इसीलिए वह आज भी नई और कालसंगत लगती हैं” | पंडित जी को इस बात को कहे सात दशक होने को आए और जिस प्रेरणास्त्रोत की बात वह कर रहे थे उसके विलीन होने को अब सौ वर्ष से भी ऊपर हो गए हैं मगर सचमुच आज के इस विज्ञान युग में भी स्वामीजी की दार्शनिकता संपूर्णतः प्रासंगिक है|
स्वामीजी की मेधावी बुद्धिमत्ता धर्म और अध्यात्म से परे उन्हें विज्ञान के भी निकट ले गई थी | आइनस्टाईन द्वारा E = mc2 के सिध्दान्त का प्रतिपादन करने से लगभग दो दशक पूर्व स्वामीजी ने जड़-चेतन सम्बन्ध पर व्याख्यान देते समय प्रतिपादित किया था कि जड़ को उर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। उपनिषदों के सन्दर्भ देते हुए स्वामीजी ने बताया कि किसी भी भौतिक वस्तु को प्रकाश की गति से प्रक्षेपित किया जाए तो वह उर्जा में परिवर्तित हो जाती है। सन् 1900 में शताब्दी परिवर्तन के अवसर पर फ्रान्स में ‘विश्व विज्ञान परिषद’ (World Science Conference) का आयोजन हुआ। स्वामी विवेकानन्द ने इस परिषद में सूत्र वक्तव्य दिया था | विज्ञान परिषद में इस भारतीय सन्यासी के वक्तव्य की खूब चर्चा हुई जिसके दो कारण थे । एक तो फ्रेंच में भाषण करना तथा दूसरा कारण था उनकी विज्ञानदृष्टि | भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसू भी अपनी कई उपलब्धियों का श्रेय स्वामी विवेकानंद ही को देते हैं जिन्होंने रेडियो लहरियों से संबंधित प्रबंध में उनकी मदद की | जगदीश चन्द्र बसू के वनस्पति में जीवन का परीक्षण, धातुओं पर विष का प्रभाव आदि प्रयोगों की मूल चर्चा उन्होंने स्वामी जी के साथ ही की थी | धर्म संसद (पार्लमेंट ऑफ़ रिलीजन्स) के लिए शिकागो जाते समय स्वामीजी के साथ यात्रा में जहाज पर जमशेदजी टाटा साथ थे | कई कई घंटों तक दोनों में चर्चा होती रहती थी | इस्पात और धातू के विषय में स्वामीजी के पास विस्मयकारक जानकारी थी जिससे प्रभावित होकर जमशेदजी टाटा ने भारतीय विज्ञान संस्थान की स्थापना करने के बाद उसके निदेशक पद काभार उठाने की विनती स्वामीजी से की थी |
स्वामीजी कि यह विज्ञानदृष्टि आज भी भारत को प्रेरणा दे रही है। भारत को वैज्ञानिक विश्व में उच्च स्थान प्रदान करनेवाले डॉ. माधवन् नायर, डॉ. ए.पी.जे अब्दुल कलाम, डॉ. ब्रह्मभट जैसे वैज्ञानिकों ने विभिन्न अवसरों पर स्वामी विवेकानन्द को अपना प्रेरणास्त्रोत बताया है। परम महासंगणक प्रकल्प के द्रष्टा संयोजक डॉ.विजय भटकर की प्रेरणा भी स्वामीजी ही रहे हैं | प्रसिद्ध कवि रामधारी सिंह दिनकर ने स्वनिजी के लिए कहा था कि स्वामी विवेकानंद वह समुद्र हैं, जिसमें धर्म और राजनीति,राष्ट्रीयता और अंतरराष्ट्रीयता तथा उपनिषद और विज्ञान सब के सब समाहित होते हैं।
युवाओं को राष्ट्रबल मानने वाली नैशनल युवा को ऑपरेटिव सोसायटी युवाओं को साथ लेकर, नए तंत्रज्ञान की राह पर , बायो एनर्जी (जैव उर्जा) के क्षेत्र में भी अपना योगदान देते हुए, रोजगार और उद्यमिता के नए अवसर निर्माण करने जा रही है | अपने श्रद्धास्थान, अपने उर्जस्त्रोत स्वामी विवेकानंद की स्मृति को नमन करने का इससे अच्छा अवसर क्या होगा ? स्वामीजी के दिखाए “धार्मिक विज्ञान और विज्ञान ही धर्म” के पथ पर उनके आशीष से सफलता प्राप्त हो ऐसी मनीषा रखते हुए स्वामी विवेकानंद के आदर्शो और विचारों को सदर अभिवादन |